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प्रगतिशील किसानों का इतिहास

प्रगतिशील किसानों का इतिहास

पद्म पुरस्कार भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला उच्चतम सिविल सम्मान है। इसे 1954 में स्थापित किया गया था। पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता दिखाने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है, जैसे कला, विज्ञान, साहित्य, सामाजिक सेवा, खेल, और यातायात। यह विभिन्न पद्म विभूषण, पद्म भूषण, और पद्मश्री से मिलकर बना होता है, जिनमें विभिन्न श्रेणियां शामिल हैं।

श्री. तुला राम उप्रेती सिक्किम से हैं। वह 98 वर्ष के हैं और उनका एक विशाल संयुक्त परिवार है जिसमें 8 बेटे और 7 बेटियां, 104 पोते-पोतियां और परपोते-पोतियां शामिल हैं। उनकी 5वीं कक्षा तक की शिक्षा तासी नामग्याल हायर सेकेंडरी स्कूल (अब टीएन सीनियर सेकेंडरी स्कूल) में हुई। उन्होंने 25 वर्षों के कार्यकाल के लिए असम लिंग्ज़ी ग्राम पंचायत इकाई के अंतर्गत लिंग्ज़ी वार्ड से एक स्थानीय पंचायत के लिए काम किया है। वह दो बार पंचायत अध्यक्ष रह चुके थे। उनके बेटे केएन उप्रेती 1979-99 तक रेनॉक निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व मंत्री और विधायक रहे हैं। उन्हें जैविक खेती पुरस्कार 2023 के लिए सम्मानित किया गया।

श्री. तुला राम उप्रेती

चेरुवायल रमन 75 वर्षीय धान किसान हैं जो केरल के वायनाड जिले में रहते हैं। वह कुराचिया के आदिवासी समुदाय से हैं। गांव वाले उसे प्यार से रामेत्तन कहते हैं। जब वह केवल 10 वर्ष के थे तब उन्होंने खेतों में काम करना शुरू कर दिया था। 1969 में अपने चाचा की मृत्यु के बाद उन्होंने धान की खेती को गंभीरता से लिया। उन्होंने अपने चाचा द्वारा छोड़ी गई 40 एकड़ जमीन पर चावल उगाना शुरू किया। उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में स्वदेशी धान के बीजों को संरक्षित करना शुरू किया।

श्री. चेरुवायल रमन

नेकराम शर्मा 59 वर्षीय किसान हैं। वह हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की करसोग घाटी में रहते हैं। 1984 में जब वे युवा थे, तब उन्हें सरकारी नौकरी के लिए अस्वीकार कर दिया गया था। ठुकराए जाने के बाद उन्होंने अपने परिवार की 22 बीघे अनुपयोगी जमीन पर खेती शुरू कर दी। उनके द्वारा फल और सब्जियाँ उगाई जाती थीं। प्रयोग के तौर पर उन्होंने जैविक खेती का प्रयास किया। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना फसलों की खेती का पूरा ज्ञान प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पूरी तरह से प्राचीन कृषि तकनीकों की ओर रुख किया। उनके इस कदम ने उन्हें 2023 पद्मी श्री पुरस्कार का विजेता बना दिया।

श्री. नेकराम शर्मा

पतायत साहू 65 वर्षीय व्यक्ति हैं जो ओडिशा के कालाहांडी जिले के नंदोल गांव में रहते हैं। उनके दादा एक वैद्य (पारंपरिक चिकित्सक) थे। इससे उन्हें औषधीय पौधों में रुचि हो गई और अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अपने दादा से उपचार पद्धतियां सीखीं। उन्होंने पारंपरिक उपचार विधियों और औषधीय पौधों और उनके उपयोग पर विभिन्न पांडुलिपियां पढ़ीं। शुरुआत में औषधीय पौधों के बारे में सीखना उनका शौक था लेकिन बाद में उन्होंने 40 साल पहले एक औषधीय उद्यान उगाना शुरू किया और समय के साथ इसमें नई प्रजातियाँ जोड़ीं।

श्री. पटायत साहू

राजकुमारी देवी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी थीं। उनका जन्म 1909 में बेगसराय, बिहार, में हुआ था। वह महात्मा गांधी के साथ समर्थन करती थीं और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। राजकुमारी ने अपने जीवन को समाजसेवा में समर्पित किया और गाँधीवादी तत्त्वों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से अच्छे रूप से जानी जाती थीं। स्वतंत्रता के बाद, उन्हें भारत सरकार द्वारा "पद्म भूषण" से सम्मानित किया गया। राजकुमारी देवी ने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया और उन्हें समाज में "माता" के रूप में सम्मानित किया जाता है।

राजकुमारी देवी

कंवल सिंह चौहान, एक उत्कृष्ट भारतीय राजनेता और भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के सदस्य थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1958 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जनपद में हुआ था। चौहान ने विभिन्न पदों पर सेवा की, जैसे कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में। उन्होंने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपनी योगदान से प्रशंसा कमाई और हिमाचल प्रदेश के विकास में योगदान दिया।

कंवल सिंह चौहान

मुख्य रूप से एक सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय नागरिक, धोंडो केशव कर्वे ने अपने योगदान से समाज में शिक्षा, सामाजिक सुधार, और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका से पहचान बनाई। उनका जन्म 18 एप्रिल 1858 को हुआ था और उन्होंने अपने जीवन के दौरान कई महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों को प्रोत्साहित किया। धोंडो कर्वे ने मुंबई के कराड जिले में जन्म लिया और उनका शिक्षा का क्षेत्र में दृष्टिकोण मुख्य रूप से महाराष्ट्र से जुड़ा हुआ था। उन्होंने मुख्यत: शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए अपनी पहचान बनाई और एक समर्पित शिक्षाविद् और समाजसेवी बने।

वल्लभभाई वसरामभाई मारवानिया

कमला पुजारी, एक उग्र स्वतंत्रता सेनानी, ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ समर्थन किया और उनकी साहसपूर्ण क्रियाओं ने उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान पर रखा। कमला पुजारी ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी भूमिका निभाई और उन्हें वहां से "মাতার পুত" (मातृका के पुत्र) कहा गया। उन्हें 1972 में बांग्लादेश सरकार द्वारा "বীর মুক্তিযোদ্ধা" (वीर स्वतंत्रता सेनानी) के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। उनका योगदान और समर्थन देशवासियों के बीच सदैव याद किया जाएगा।

कमला पुजारी